
,,जांजगीर चांपा छत्तीसगढ़।
दिलेसर चौहान संवाददाता
आज चैत्र महीने में जोराडीह मेले में 4000 बकरे की बलि चढ़ाई गई।
यह परंपरा सदियों से चली आ रही है ।
लाखों की संख्या में पहुंचे श्रद्धालु अपने अपने मांग मन्नत को लेकर पहुंचते हैं।
हिंगलाज माई का पहाड़ों पर बसेरा है, यहां खंडी माता का पूजा करने पहाड़ पर लोग जाते हैं।
एवं शाम होते-होते पहाड़ से नीचे आकर चले जाते हैं ,मान्यता है कि यहां बलि देने के बाद कोई आदमी नहीं ठहरता ,वरना कुछ अनहोनी होने का खतरा हमेशा बना रहता है।
यहां दूर-दूर से श्रद्धालु पत्थर की देवी खंडन माता का दर्शन करने आते हैं ,बताया जाता है कि सारंगढ़ का राजा देवी को मना कर हर पग में एक बकरा देने का वादा कर उसे सारंगढ़ ले जा रहा था ।
मगर 4:00 बजे रात को बकरा खत्म हो जाने के कारण रात में ही गांव में तलाशी करवाएं मगर बकरे का इंतजाम नहीं हो पाया ,इस कारण सारंगढ़ के राजा ने देवी का नाक काट कर ले गया। तब से अब तकमाता का पूजा होता है।
इस उपलक्ष में भव्य मेला का भी आयोजन होता है, मगर इस से 4 किलोमीटर दूर मेला लगता है।
कहते हैं देवी रात में ही निकलती है ,और जो आदमी वहां रात में रहता है, उसे भक् लेती है ।
कई बार लोगों के द्वारा छुप छुपा कर देखने सच्चाई जानने की कोशिश करते थे, मगर बताया जाता है कि सुबह उनका लाश पहाड़ों पर मृत अवस्था में पाया जाता था ।तब से आज तक देवी के दर्शन 5:00 बजे तक करने के बाद वहां कोई नहीं रुकता।
आज का दिन छत्तीसगढ़ में एक ऐसा देवी पहाड़ों पर विराजमान है जो नारियल ,सुपारी ,अगरबत्ती, नहीं चढ़ाया जाता।
केवल मुर्गा और बकरे की बलि देकर प्रसादी के रूप में ग्रहण करते हैं।
