जांजगीर चांपा छत्तीसगढ़
संवाददाता दिलेसर चौहान
मुख्यमंत्री का आगमन उनके गृह ग्राम बगिया, मे पहुंचने पर पर स्वागत हुआ। किसी देव की तरफ पूजा आरती ,कर तिलक लगाकर माला पहनाकर किया।
विष्णु भगवान, ना सही विष्णु देव तो हैं जो उनका ख्याल रखेंगे।
आदिवासियों के नृत्यांगना, मदार की थाप पर पारंपरिक लोक नृत्य कर रहे थे।
वहां भी मुख्यमंत्री जी से रहा नहीं गया।
वह स्वयं मांदर लेकर नाचने बजाने लगे, यह देख लोगों में अपनापन का एहसास कराया।
उन्हें नहीं लगा कि कोई मुख्यमंत्री आया है ।
मुख्यमंत्री जी ने भी अपने गांव के बीमार सुकांति को फोन कर हाल-चाल जाना,
उन्हें जल्दी ठीक होने की कामना भी किया सुकांति ने कहा कि आपसे बात उनका आधा दुख खत्म हो गया।
उन्हें लगा उनका अपना है जो उनका दुख दर्द हर सकता है। अब आदिवासियों को भी लगने लगा है कि अब छत्तीसगढ़ में उनकी अपनी आदिवासी सरकार है।
आदिवासी समाज सीधे-साधे भोले भाले, गरीब, एवं वचनबद्ध होते हैं ।उनमें घमंड ,लालच,नहीं होता, दूसरे लोगों को इज्जत मान सम्मान देना जानते हैं।
छत्तीसगढ़ में कहावत है ,
बैरी बर उच्च पीढा।
यह कहावत फिट बैठता है। अर्थात दुश्मन को भी उच्च स्थान देते हैं कोई पहचान का ना हो फिर भी दरवाजे पर आने से बैठा, बैठा, कहते है।
छत्तीसगढ़ राज्य में आदिवासी की गिनती पिछडे़ पन और विकास से कोसों दूर माने जाते है इनकी आबादी 33 परसेंट है माननीय प्रधानमंत्री ने इसे जाना और समझा ,
आदिवासियों को बिन मांगे आदिवासी मुख्यमंत्री दे दिया । मुख्यमंत्री विष्णु देव सायं आदिवासियों को जल ,जमीन उनके भविष्य को लेकर चिंतित है।
एक नंबर 2000 छत्तीसगढ़ अस्तित्व आने से पहले मध्य प्रदेश के समय से ही कांग्रेस पार्टी मुख्यमंत्री आदिवासी होने का कार्ड चलती थी।
बहुजन समाज पार्टी ने भी कांग्रेस पार्टी के गद्दावर नेता बसपा में शामिल होने पर मान्यवर काशीराम बीएसपी के संस्थापक ने अरविंद नेम को मुख्यमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट किया था।
इस तरह से मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ विभाजन होने से पहले भी आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग उठती रही थी।
भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में विष्णु देव सायं को मुख्यमंत्री बनाया गया है।
इससे आदिवासियों में खुशी का लहर ही नहीं बहुत कुछ आशाएं भी है ।
मुख्यमंत्री ने छत्तीसगढ़ी भाषा में बीमार सुक्रांति को उनके गांव के , जिस तरह से फोन कर हलचल पूछा और अच्छा इलाज का भरोसा दिलाया ,उनके फोन करने पर बीमार सुक्रांति का आधा दुख चिंता कम हो गया ।
जुबान की मिठास सभी पकवानों पर भारीभारी इसके आगे कोई भी नीति, नाता, और काता सब फिके पड़ जाते हैं। क्योंकि जुबान के मिठास के आगे कोई भी मिठास नहीं।