
नसीमखान
रायसेन,
मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग द्वारा जिला प्रशासन रायसेन के सहयोग से महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर भोजपुर स्थित शिव मंदिर प्रांगण में तीन दिवसीय “महादेव” भोजपुर महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। कार्यक्रम प्रतिदिन सायं 6:30 बजे से शुरू होगा, जिसमें श्रोताओं का प्रवेश निःशुल्क रहेगा। संचालक, संस्कृति श्री एन.पी. नामदेव ने बताया, समारोह की दूसरी सभा में गुरुवार को तालवाद्य कचहरी में श्री अंशुल प्रताप सिंह एवं साथी, भोपाल ने ‘शिव तांडव’ की प्रस्तुति दी। इसके बाद अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में डॉ. हरिओम पंवार, सुश्री अनामिका अम्बर, श्री विष्णु सक्सेना, श्री बलराम श्रीवास्तव, सुश्री मेधा, श्री अमन अक्षर और श्री लक्ष्मण नेपाली ने अपनी कविताओं से श्रोताओं को भक्ति रस में भिगो दिया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि भोजपुर मंदिर के श्रीमहंत पवन गिरी जी महाराज थे।
तालवाद्य कचहरी “शिव तांडव” की शुरुआत तीन ताल 16 मात्रा में की। कलाकारों ने वैरागी भैरव बसंत मुखारी राग, ताल रूपक एवं तीन ताल में शिव की महिमा का बखान किया। अंशुल ने तबला पर शिव के डमरू और शंखनाद को तबले के सामंजस्य से इतनी ख़ूबसूरती से पेश किया कि उपस्थित सुधीजन शिव-शक्ति के मेल को साक्षात् अनुभव कर पा रहे थे। ताल वाद्यों द्वारा भगवान शिव के विविध रूपों को जुगलबंदी कर अपने घराने की अनूठी परंपरा के दर्शन कराए। अंतिम चरण में सभी वाद्यों की शिव तांडव पर जुगलबंदी सवाल-जबाव के साथ कार्यक्रम का समापन किया। अंशुल के साथ घटम् पर वरुण राजशेखरण, संतूर पर दिव्यांश श्रीवास्तव, वायलिन पर शुभम् सरकार, की-बोर्ड पर रोहन कामले, पखावज पर प्रखर विजयवर्गीय ने संगत दी।
अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में दिल्ली से आए डॉ. हरिओम पंवार ने सिंहासन के माने होते हैं सिंहों सा आसन हो, कायरता से दूर अटल संकल्पों का अनुशासन हो… कविता का पाठ कर सिंह के समान गर्जना के साथ प्रस्तुति का आगाज किया। अगली कड़ी में ये अग्निगंधा मौसम की बेला है, गंधों के घर बंदूकों का मेला है, मैं भारत की जनता का संबोधन हूँ… के माध्यम से आम जनमानस के दर्द से ख़ुद को जोड़ लिया। डॉ. पंवार ने हर संकट का हल मत पूछो, आसमान के तारों से, सूरज किरणें नहीं माँगता नभ के चाँद-सितारों से… के जरिए श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर लिया। वहीं डॉ. अनामिका अंबर ने बिखरकर शौर्य की ख़ुशबू चमन को चूम लेती है, जवाँ हसरत तिरंगे की गगन को चूम लेती है, सिपाही जब निकलता है वतन पर जान देने को, वतन की धूल उड़-उड़ कर बदन को चूम लेती है… कविता के माध्यम से श्रोताओं को देशप्रेम के जोश से भर दिया। डॉ. अंबर ने कार्यक्रम को विस्तार देते हुए जैसे ही, तय कर लो अब सत्य सनातन, की छाया हो शासन पर, राम भक्त ही राज करेगा, दिल्ली के सिंहासन पर, राम प्रतिष्ठित किए जिन्होंने, अवधपुरी के आसन पर, रामभक्त ही राज करेगा, दिल्ली के सिंहासन पर, जय श्री राम जय श्रीराम, जय श्रीराम जय श्रीराम… कविता का पाठ किया पूरा मुक्ताकाश मंच जय श्रीराम के नारों से गूँज उठा। इसके पश्चात उन्होंने प्रेम की मिठास से भरी रचना मोहब्बत के सफ़र को एक हसीं आग़ाज़ दे देना, मेरा कल मुस्कुरा उठे तुम ऐसा आज दे देना, वफ़ाएँ देख लेना तुम तुम्हारी प्यार की ख़ातिर, चली आऊँगी मैं सब छोड़ कर आवाज़ दे देना… पेश की।
मैनपुरी से आए बलराम श्रीवास्तव ने किसी से प्यार के प्रतिदान की इच्छा नहीं करते, स्वयं के व्यर्थ में यशगान की इच्छा नहीं करते, जन्म हर बार लेना चाहता हूँ भूमि भारत में, अमरता के किसी वरदान की इच्छा नहीं करते… रचना पेशकर माँ भारती के चरणों में अपना शीश नमन किया। हाथरस के डॉ. विष्णु सक्सेना ने जो हाथ थाम लो वो फिर न छूटने पाये, प्यार की दौलतें कोई न लूटने पाये, जब भी छूलो बुलंदियाँ तो ध्यान ये रखना, ज़मीं से पाँव का रिश्ता न टूटने पाये… रचना सुनाई तो नई दिल्ली से आईं डॉ. मेधा ने न कोई हंगामा न कोई तूफान ही उठा, दबे पांव कैसे गुज़र रही है ज़िंदगी, माया महाठगिनी की सहेली होकर भी, बच्चे की हथेली पे नाचती लट्टू है ज़िंदगी… रचना के माध्यम से आम व्यक्ति की ज़िंदगी की कठिनाइयों को बयां किया। इंदौर के अमन अक्षर ने सारा जग है प्रेरणा, प्रभाव सिर्फ़ राम है, भाव सूचियाँ बहुत हैं भाव सिर्फ राम हैं… और सांची के लक्ष्मण नेपाली ने राम ही सूखी नदी हैं, राम ही नदियों का जल, राम से आज है तो राम से ही बसा रे कल… और जब-जब कागज़ पर लिखा, मैंने माँ का नाम, कलम अदब से कह उठी हो गए चारों धाम… रचना के माध्यम से माहौल को भक्तिमय बना दिया।